अपरिवर्तित अस्तित्व

इस बदलते समाज में भले ही हम अंग्रेजी की तरफ़ कितना भी आस्कत हो जाए पर हमारा मूल ह्रदय हिन्दी में ही वार्तालाप करेगा! यह ब्लॉग मेरे उसी मूल अस्तित्व को समर्पित है!

Tuesday, February 25, 2014

आरक्षित गम और ख़ुशी

शाम के ५ बजे, हाथ में डाक लेकर हम तीनो 'शेफाली स्वीट्स' के सामने चबूतरे पर बैठे थे! हम सब ने एक प्रवेश परीक्षा दी थी आज उसी का परिणाम आना था! वायदे के मुताबिक अखिल को डाक सबसे पहले हमारे सामने खोलनी थी क्यूंकि जितना विश्वास अतुल  और मुझे अपने न सेलेक्ट होने का था उतना ही अखिल के सेलेक्ट होने का! अखिल को हमारे बारे में सब पता था जब मैं और अतुल क्लास बंक मारकर सीधा शेफाली पर आते तो वो चबूतरे पर आकर हमें बड़े भाई कि तरह पढाई करने की सीख देता! खैर हम  सीखने वालो में से कहा थे! खयालो कि दुनिया से मुझे  बाहर निकलते हुए  अतुल ने मेरा हाथ झंझोड़ा क्यूंकि अखिल अब  डाक फाड़ रहा था! अखिल का ३५० रैंक आया था और टोटल सीट ५०० थी! यह देखते ही अतुल रहीम चाचा के पास गया और उसने केक का आर्डर कर दिया वोह भी अखिल का फेवरेट चॉकलेट केक! सीना गर्व से चौरा हो रहा था क्यूंकि  लाखो लोगो में अपने जिगरी ने इतना रैंक मारा है उसके मार्क्स देख कर विश्वास नहीं हो रहा था कि इतने ज्यादा मार्क्स के बाद भी उसका ३५० रैंक आया है! अखिल उत्सुक होकर जल्दी जल्दी  रिजल्ट और मार्क्स देख रहा था! मैंने चिल्ला कर कहा, " रहीम चाचा ३ प्लेट फलूदा भी बना दो!" रहीम चाचा ने वही घीसा पीटा जवाब दिया, "शैतानो पिछला उधार भी चूका दो!" अतुल उन्हें समझने लगा कि अब अपना अखिल बड़ा आदमी बन गया है और आपके सारे उधर सूत समेत वापस कर देंगे और इनाम भी देंगे आपके असीम प्यार का!

मैंने चाचा  से नजर हटाकर जैसे ही अखिल कि और देखा तो पाया कि अखिल कि आँखों से आंसू टपक रहे है! बेवकूफ के ख़ुशी के आंसू भी ऐसे आ रहे थे जैसे उसका सिलेक्शन न हुआ हो और वोह रो रहा हो! मैंने कंधे पर हाथ रख उसकी ख़ुशी बांटनी चाही तो उसने रुँआसी हालत में रिजल्ट मेरे हाथ में दे दिया! मैंने पुरे रिजल्ट पर नजर मारी तो सब समझ आ गया! अखिल के आंसू ख़ुशी के नहीं थे, वो तो उसी बात के थे जो मैं सोच रहा था! उसके रिजल्ट्स में नोट सेलेक्टेड लिखा था! पूरा पढ़ा तो पता चला कि रिजर्वेशन के चलते ५०० कि टोटल सीट में से  २५० सीट ही जनरल केटेगरी कि थी! हमारी हालत देख अतुल फलूदा लिए हमारे पास आया जब उसे पता चला कि अखिल का सिलेक्शन नहीं हुआ है तो वो चुपचाप उसके कंधे को सहारा देकर बैठ गया! न जाने कितनी देर तक हम चबूतरे पर बैठे थे कि तभी अतुल कि मोबाइल कि घंटी बजी! घर से फ़ोन आया था! वो बिना  बोले घरवालो कि बात सुन रहा था! फ़ोन कटते ही उसकी आँखे नाम हो गयी, इतने में रहीम चाचा केक लाकर रख चुके थे! हमारी हालत देख उन्होंने पैसे दोबारा माँगना जायज नहीं समझा! फिर काफी चुप्पी का माहौल बन गया! नाम आँखों में रुदन स्वर में बहुत देर बाद अतुल कुछ बोला, उसके शब्द सुनकर मैं तो स्तब्ध रह गया पर अखिल ने हिम्मत दिखाते हुए सामने पड़ा केक काट कर अतुल को खिलाया और उसे बधाई दी! हम तीनो रो रहे थे और ख़ुशी-गम के असमंजस में थे! मुझे समझ नहीं आ रहा था कि रिजर्वेशन सिस्टम सही है या गलत क्यूंकि अतुल यादव ओ. बी. सी. कोटे से जहाँ कम अंको के बावजूद परीक्षा उतीर्ण करते हुए सेलेक्ट हो चूका था वही एक हुनर उससे कही अधिक अंक लेकर टूटा सा जान पड़ता था!


Monday, September 2, 2013

हमसफ़र की कलम या मेरे लफ्ज़

अब सच बोलने से डर लगता है
कही किसी को बुरा न लग जाये
कही किसी को पता न चल जाए
कही कोई मुझे गलत न समझ ले

और कही उसके नतीजे मेरे खिलाफ न जाए
मेरे जज्बात मेरे आभास कही मुझे अपनों से दूर न कर दे
और कही उन अपनों से जो अभी मेरे हो भी न पाए है
कही उन अपनों से जो मेरे सबसे करीब होने वाले है

सच में डर गया हूँ

बहुत डर लगता है की कही मेरे न बोलने से वो मुझसे दूर तो नही हो जायेंगे
कही मेरे बारें में गलत सोच तो न धारण कर लेंगे
कही मैं उन्हें बदला हुआ न लगु
कही मैं उन्हें कमजोर न लगू
कही मेरे एक्सप्रेशंस मुझे कमजोर न साबित कर दे
कही मेरे मुंह से निकले शब्द वापस न हो पाए

बहुत डर गया हूँ

मेरी सोच सामने वाले को बदलने पर मजबूर न कर दे
कही वोह बदल जाए तो मेरा यह कहना "जैसे हो वैसे रहो" का गुरुर ख़तम न कर दे
कही उसके न चूर होने वाले सपनो को चूर चूर न कर दे

मैं बदलना नहीं चाहता
मैं कमी निकलना नहीं चाहता
मैं बताना भी नहीं चाहता की मुझे बुरा लगा या नहीं
पर सर पीर एक बोझ होता है जो हल्कता करना चाहता हूँ

इसके लिए नहीं की वोह मुझसे दूर हो जाए
इसलिए की कही वोह मुझसे दूर न रह जाए

पर कभी दुसरे की इतनी गलती बताने से वोह भी परेशान हो गया तो
उसको भी बहुत  दर्द अपनी पहचान पर हो गया तो
यही सोचकर की वोह भी मेरी तरह इंसान है
मेरी ही तरह उसमे भी बुरा मान सकने वाली जान है

होंठ सिये जाता हूँ

पर जब कभी अनजाने में हुई हुस्ताखी पर कोई बुरा मान जाए
 भी वोह बात घूम घूम कर आये
एहसास हो की तुम्हारा साथी तुम्हे समझ नहीं पा रहा
सच यही होगा की मैं उसे कही समझ नहीं पा रहा

वोह हमराह है तभी हर पल में मेरे साथ है
यह भी सच है की उसके कई जज्बात है
पर जिद और धरना का यह करम है
जिसने दिल में दल एक वहम है

कि होठ सिये जाता हूँ

बस विश्वास हो की वोह बुरा न मानेगा
मेरे शब्दों से मेरे व्यक्तित्व को नहीं जानेगा
छोड़ेगा तो नहीं पर विश्वास कर मेरे को मानेगा
तो मेरा हमराही तब कही मेरी बात जानेगा

वोह जान मेरे दिल की जान है
पर हम दोनों की डिमांड जब एक दुसरे के हाल से अनजान है
तभी दिल दुःख जायेगा किसी बात का
सिर्फ एहसास बुलंद हो एक दूजे के साथ का
तभी वो बयान हाले-दिल कर पायेगा
जब उसके जज्बातों का समुन्दर मेरे दिल में उतर जायेगा
तब भी उसके व्यक्तित्व का मजाक न बनाऊंगा
उसे मान अपने पास दिल के गले लगाऊंगा

वोह बदलेगा मैं भी बदल रहा हूँ
वक़्त के खेल को उसके साथ समझ रहा हूँ
कि  साथ जो रह रहे है तो दुसरे से सब आशा है
वो पूरी न हो तो भी न कोई निराशा है

शायद होंठ बंद है
पर कलम चल रही है
न जाने वोह वार किधर कर रही है

पर कलम सही चली तभी होगी
जब शब्दों से बढ़ी दूरी कलम के एहसास से दूर होगी
सच यह है की जब कभी मुझे उसमे कोई कमी नजर आती है
हर दम कमी उसमे नहीं मुझी में कही आती है

वोह तो मेरा प्रतिबिम्ब है मेरा, मेरे अधोरे शरीर का पूर्ण आधार है
धुंडने को तो हर बात में १०० कमियों का भण्डार है
पर क्या अपने दाए हाथ में कमी निकलना बाए हाथ का प्यार है

शीशे में सचे दिल से झांक कर जब कलम ने सच कहा
उसके दो शब्द, दो पल की रिएक्शन को उसका व्यक्तित्व जान मैंने उसको गलत साबित कर दिया
पर दो पल की बात पर गलत साबित करने के चक्कर में गलत खुद ता-उम्र हो गया

वोह मेरी जान मेरा प्यार मेरा आधार है
उस से मुझे इतना ज्यादा प्यार है
की दो पल की बात में बुरा न मनु तो मेरे प्यार का इज़हार है
और बदलेंगे तो हम दोनों ही क्यूंकि एक दुसरे के साथ रहना कही दिल के किसी कोने का सपना साकार है

होंठ सिले थे की कही बुरा न लगे
कलम लिख रही थी की बुरा हो क्या रहा है
अब लफ्ज़ खुलेंगे, इज़हार करेंगे,
तेरे में कमी निकलने से पहले,
अपनी इस कमी निकलने की कमी को हम दूर करेंगे

Monday, December 24, 2012

तब भी मैं था आज भी मैं हु

जमीन के ऊपर आसमान पर मैं बादलो को ताका करता था,
बादलो के बीच में भटक रहे जहाज़ को अलविदा कहने के लिए !
जहाज़ से अलविदा कह रहा हु बदलो में ताकते हुए,
किसी जमीन से जाहज को  ताकने वाले के लिए!!

तब भी मैं था आज भी मैं हु पर कुछ बदला जरुर है बदलने के लिए

सुबह रिक्शा में स्कूल जाते हुए कार को देखा करता था,
कार में बैठे कही जा रहे थे जिंदगी को जीने के लिए!
जिंदगी की रोज़ सुबह कार से ऑफिस को जाता हु,
घर  से स्कूल जाने वाली रिक्शा की बेहतरी के लिए!!


तब भी मैं था आज भी मैं हु पर कुछ बदला जरुर है बदलने के लिए

हफ्ते के 10 रुपए खरचता टॉफी चॉकलेट खाने पर,
बनिया खूब हिसाब लगता बचे पैसे वापिस देने के लिए!
सब पैसो का हिसाब लगाकर बनिया बन मैं बैठा हु,
हफ्ते के 10 रुपए बचाता हु टॉफ़ी चॉकलेट लाने  के लिए !!

तब भी मैं था आज भी मैं हु पर कुछ बदला जरुर है बदलने के लिए 

दुनिया की भीड़ में आगे से आगे जा रहा हु ,
पीछे माँ बापू को गौरवान्वित करने के लिए !
गौरवान्वित माँ बापू की तरह पीछे खड़ा रहूँगा ,
दुनिया की भीड़ में अपने बेटे को धूधने  के लिए !

आज भी मैं हु तब भी मैं होऊंगा पर कुछ बदल जरुर जाएगा बदलने के लिए 

Saturday, July 21, 2012

एक शाम हर शाम जैसी

ठोकरो को खाकर वापस सफ़र तय करते देखा है; सबको अपनी मंजिल तक उसे पहुचाते देखा है; सैकड़ो मील का सफ़र तय करके वही रोज उसे उसी जगह देखा है; हजारो की जान ले चूका होगा उसको मैंने सदैव शांत देखा  है; मेरे जैसे लाखो लोग जिसे रोज देखते है, वही चंद्रमा की अठखेलियो पर नाचते हुए उसकी लहरों को सबने देखा है! हाँ, उस अचल, दृढ, कोमल, शांत, शीतल समुन्द्र को मैंने देखा है! उसकी चंचल स्थिरता को देखकर मन विचलित सा जान पड़ा और लोकल बस से उतारकर तट के किनारे, सूर्य की पर्याप्त किरणों की चाव में घंटो का समय मैंने कुछ क्षणों में व्यतीत कर दिया!

आँखों के सामने तट के किनारे खेल रहे बालक को मैंने आवाज देकर कहा किनारे पर मत जाना डूब जाओगे! अचानक समय रूपी रथ भूतकाल में गया और किशोर अंकल की आवाज कानो पर पड़ी "किनारे पर मत जाना डूब जाओगे"!  किशोर अंकल को अत्यंत कठोरे समझ मैंने किनारा छोड़ दिया! वैसी ही भावना मुझे तट पर खेल रहे उस बालक में दिखी जिसने मुझे मेरे बचपन और किशोरे अंकल की याद दुरुस्त करा दी थी! वाकई बचपन का एहसास सोहार्दपूर्ण होता है जो हम सभी अपने जीवन के किसी न किसी वक़्त पर महसूस करते है! हम सोचते रहते है की अगर हम बच्चे होते तो यह होता या फिर वो हो जाता, वाकई बचपन में बिताये गए दिन भूले नहीं भूले जाते!

वाणी, प्रिंस, गजेन्द्र, अरुण, ललित; अरे पड़ोस की वो ललानी आंटी जिनके घर पर क्रिकेट की गेंद जाती थी तो बस इस बात पर ही डांट पड़ती थी की गेंद उनके सर पर लगी है! क्या दिन थे वो भी! काश! काश! काश! मैं बच्चा ही रहता तो पैसा कमाई फोर्मलिटी शादी नौकरी बिल, न जाने कितनी समस्याओ से दूर रह मजे कर रहा होता! यह पाबन्दी....

बैठे बैठे 3 घंटे हो गए थे! समय का पता भी न चला, पता चला तो बस पाबन्दी का जो बचपन में  किशोर  अंकल ने मुझ पर लगायी थी और मैंने उस बालक पर! वाकई पाबन्दी पर सोचा तो एहसास हुआ की बड़ा मैं खुद हुआ हूँ! मैं आज भी उस बच्चे के साथ किनारे पर खेल सकता था पर नहीं मुझे तो बड़ा होना था,  किशोर अंकल बनना था! वाह री दुनिया तेरा ढान्दस बाँधने के लिए बड़ा होना पड़ता है! वैसे तो बचपन के दिन अच्छे लगते है पर सच पूछो तो दिल के कही कोने में अब बचपन भी बचपना सा लगता है!

समय वाकई तेजी से बीत रहा है! मैं घड़ी की बात कर रहा हूँ, मुझे चार घंटे हो गए है और पास में वो माँ अपने बेटे को सुलाने की कोशिश कर रही है! क्या उस माँ को भी वही लोरिया याद होगी जो उसको उसकी माँ ने बचपन में सुनाई थी? अपने बच्चे के बाल्यपन को देखकर क्या उसकी आँख नाम न होती होगी? क्या वो  अपनी बचपन की सखी रुची, गुरप्रीत, और आँचल को याद न करती होगी! अवश्य ही करती होगी तभी तो दुनिया से बेखबर निहार-निहार के अपने बच्चे को सुला रही है!

समुद्र तट पर दूर-दूर से बहती हुई चीज़े आती है और न जाने कैसे कैसे ख्याल अपने साथ लेकर आती है! अब इस कमल के फूल को ही ले लो जो मेरे पाँव से टकराया! शायद यह भी कली बनकर खुश रहता पर इस संसार में महत्व तो खिले फूलो का ही है! तभी दूर खड़े वृक्ष ने भी आभास कराया की यदि वो पौधा ही रह जाता तो शायद चिड़िया अपने बच्चे सिर्फ मेरी रसोई में बने घोसले में ही देती, जिस घोसले को मैं हर महीने साफ़ कर देता! फलस्वरूप वह अपने बच्चे का पालन पोषण सही से ना कर पाती!

शाम ढल चुकी थी, समुद्र अभी भी मथ रहा था, विचारो को! एक और जहा बच्चा,किशोर अंकल और माँ बाल्य होने पर मजबूर कर रहे थे; वही कमल और वृक्ष ने मेरी जिम्मेदारी को महत्त्वपूर्ण सिद्ध कर दिया था! समुद्र तट पर इन सबके बीच में चिड़िया खड़ी थी और उसे अपना आदर्श मान मैंने समुद्र को चंद्रमा के इशारे पर बड़े होते हुए देखा और बस नंबर 621 पकड़ कर घर की ओर हो गया ताकि अपना घोसला संभल सकू!

Thursday, June 10, 2010

एक और दास्तां

मैंने अपने पहले ब्लॉग मे एक असाधारण यात्रा के बारे मे बताया था, वैसा सा ही संयोग एक बार दोबारा हुँआ है! ये घट्ना है मेरे भाई के विवाह से पुर्व हो रहे रोके कि रसम के उपरांत मेरी मुंबई वापसी की! वैसे तो जब कभी आदमी का दिन खराब होता है तो हो रहे सब संयोगमात्र उसे गलत ही लगते है! वैसे ही घटित संयोगों को मै क्रमांक सहित लिख रहा हूँ:

समय : ५:०० सांय

दिनांक : २५-०५-१०

स्थान : इंद्रापुरम

  1. मै थका-हारा ओख्ला से वपिस अपने भाई के घर आकर बैठा था! मेरी बहने श्रुति और तप्पी भजनपुरा से फोन करके घर आने को कहती है! मै उन्हे मना कर देता हुँ क्योंकि अभी मै थक गया था और रात्रि में मेरे भाई ’अंकदीप’ ने अपने मित्रों के साथ एक सामुहिक गोष्ठी आयोजित की थी! शाम को वीभु आता है और बताता है कि आज उसका व्रत है! और फिर मेरा भाई घोषित करता है कि गोष्ठि स्थगित कर दी गयी है! मैने सोचा ना तो party हुई और न ही मै अपनी बहन के घर जा सका!
  2. बातों ही बातों में रात के नौ बज गये और मै बिस्तर पर सोने चला गया क्योंकि प्रातः ५:२५ पर मेरी मुम्बई की Flight थी! तभी मेरे भाई का मित्र वहां आ गया और अनंत काल तक चलने वाला सम्वाद अर्थात ’भारतीय स्वरुप में परिवर्त्न’ की चर्चा शुरु हो गयी! इसी बीच मेरा भाई अपनी होने वाली संगिनी के साथ Mobile पर व्यस्त था! इसी सब मे रात के ११ बज गये और हम भारत को उसकी हालत पर छोडकर सोने चले गये लेकिन मेरे भाई का अपनी संगिनी के साथ संवाद देर रात तक चलता रहा! अतः मेरे भाई ने अपने Mobile को Silent Mode पर कर दिया ताकि मेरी निन्द्रा मे विघ्न न पडे! सुबह वही हुआ निन्द्रा मे विघ्न नही पडा और हम सोते रह गये अर्थात Flight छूट गयी!
  3. जब सुबह ५:५० पर आँख खुली तो हमारा गहन शोध चालू हो गया कि हमारे विश्वसनीय Alarm कहां चले गये? खैर ऐसी परिस्थिति मे मै गाने गाता हूँ और मेरा भाई ‘You can put the blame on me’ वाला संगीत क्योंकि वो बचपन से ही जिम्मेदाराना है और मै तो ........! हमने Airlines को फोन किया तो उसने बताया कि Fresh Flight Book करनी पडेगी और Missed Flight के रु ५०० आपको refund मिल जायेंगे! मैने अपने शुभचिंतकों से पता किया तो सभी ने बताया कि यही एक रास्ता है अर्थात रु ६००० का चुना!
  4. दुर्भाग्य इतना स्थिर था कि लगा रु ६००० का नुक्सान तो नही झेल पायेगा तो निश्चय किया गया कि ट्रेन से जाया जायेगा! हम दोनो भाई स्टेशन पहुँच गये और Railway मे हुये नवीनतम नियम बदलावों का उपयोग भी किया पर सब व्यर्थ रहा! हमे Auto Driver ने एक जगह बतायी जहाँ निश्चित रुप से टिकट मिलता, हम उधर गये तो वो एक Reservation Counter था, मेरा मतलब Reservation की वहां Line थी, नही नही लम्बी Line थी, अजी Line क्या जमावडा था लोगो का, पुरे हॉल में ठसाठस भरे हुए थे! सारांश में माहौल ये था कि Reservation Counter जिस Hall मे था वो पुरा भरा हुआ था और उस Hall मे Entrance के लिये Line लगी हुई थी! तो हमारे साथ वही हुआ दुर्भाग्य अपराजिता और हमे टिकट नही मिला!
  5. कोई नही जहाँ चाह वहाँ राह और नुकसान झेलने की शक्ति बढा कर मैने नयी Flight बुक कर दी! और मेरा भाई हर रोज की तरह Office चला गया और मुझे कह गया कि मै आज अपनी बहन के यहाँ सामान लेकर चला जाऊँ! मैने भी जिंदगी के सूत्र Move On को अपनाया और निकल पडा अपने दो लबादो को उठाकर! Auto मे मैने अपने मित्र ’विश्वास’ से बात की, जिसने कई जगहों से सुनिश्चित करके बताया कि Flight छूट जाने पर Airport पहुँच कर थोडी सी अधिक धनराशि का भुगतान करके अगली Flight पकडी जा सकती थी! ये सुनिश्चित खबर सुन कर शुभचिंतकों पर गुस्सा आ रहा था और ना होने वाले नुकसान को करके अपनी किस्मत पर मुस्कुराहट!
  6. अब मै ये उल्टफेर करता हुआ कि नुकसान से कैसे बचा जाये, Auto से उतर गया, Metro की चार लाईन बदल गया और आन्नद विहार से सीलमपुर पहुँच गया! उधर जाकर मैने भजनपुरा का Auto किया! Auto मे बैठते ही मेरे होश उड गये, मै सकपका सा गया! Auto से बाहर निकला और गुस्से मे एक पत्थर पर जोर से लात मारी! फिर मैने अपने भाई को फोन किया और बोला कि आज का दिन ही खराब है! उसने भी मुझे डाँटकर फोन रख दिया! दरअसल मै जिस Auto मे ईंदरापुरम से आन्नद विहार आ रहा था उसमे अपना सामान छोड आया था! दुर्भाग्य का छ्टा खेल!
  7. अब फिर से Move On बोला गया और प्यार से Chill! भजनपुरा पहुँचने वाला था कि मेरे भाई का फोन आया और उसने मुझे सान्तवना दी! उसे गुस्सा आ रहा था तो इस बात का कि इतने नुकसान के बाद भी मै विषाद क्यों नही प्रकट कर रहा! अचानक जोर से आवाज आई और मेरा फोन बन्द हो गया! ज्यादा मत सोचिए मेरे बाजू मे एक स्कूटर लडखडा कर गिर गया था और मेरे मोबाईल की Battery खत्म हो गयी थी! मैनें स्कूटर वाले को उठाया और बोला कि ’तेरी गलती नही है मेरा दिन ही ऐसा जा रहा है!’ और ये बोल कर मै सीधा अपनी बहन के घर पहुँचा और किस्मत के ७ खेलों के बारें मे सोच रहा था!
  8. अब पुरी शाम कुछ नही हुआ! अपने घर मैने Flight छूटने की बात बतायी पर सामान खोने की नही क्योकिं ये पता चलते ही घर का वातावरण खराब हो जाता! इसलिए निश्चय हुआ कि कुछ दिनों में बात बतायी जायेगी! पहली बार घर से कुछ जान कर छिपा रहा था तो आत्मग्लानि भी हो रही थी! रात्रि मे मेरा भाई भी ऑफिस से घर आ गया और तुरंत बाद घर से फोन भी! तभी मैने न जाने क्यों सब कुछ अपनी माँ को बोल दिया! मेरे पास सरल सा उपाय था कि मै नुकसान पर विषाद करता और मेरे माँ-बाप मुझे प्यार से खो चुके सामान को भुल जाने कि सान्तवना! पर नही हम तो गान्धी जी के भक्त है और उल्टा समझाया गया कि जो हो गया सो हो गया! फलस्वरुप जो गान्धी जी के साथ हुआ था वैसा ही दूरभाष पर मेरे साथ भी हो गया! किस्मत का ८वां झांपड!
  9. अब जैसा आपके लिये पडना कठिन हो रहा है वैसे मेरे लिये जागना अतः इस रात्रि को भी ठीक ११ बजे मै सो गया! आप सही सोच रहे है मेरी Flight आज miss नही हुई बल्कि मै दो घन्टे बाद जागा और १ बजे से जागता ही रहा! सुबह-२ ३:३० बजे मेरा भाई और मोसेरा भाई मुझे Airport तक Alto से छोडने गये! वो मेरी किस्मत पर मेरे मजे ले रहे थे कि सोने पर सुहागा करने के लिये Police ने हमे रोक लिया! खैर हमने मौसेरे भाई से पुछा तो वो बोला सब कागजात पुरे है! मेरे दिल को खुशी हुई और लगा वाकई अगले दिन Life Move On हो चुकी है! परंतु तभी आभास हुआ कि गाडी का Insurance घर पर है और तभी मेरी किस्मत पर मेरे मजे लेने वाले भी मेरी चपेट मे आ गये!
  10. खैर जैसे तैसे मैने Flight पकडी और सोचता रहा कि इसका आज Accident हो जायेगा क्योंकि मेरे दिन ही खराब चल रहे है! Accident तो नही हुआ तो इस बात पर मै मुम्बई पहुँच कर Flight से Terminal पर तक पहुँचाने वाली Bus मे भगवान का शुक्रिया कर रहा था कि Bus खराब हो गयी! सब लोग नयी Bus का इंतजार करने लगे और मै ११ वें हादसे का!
  11. शुक्र है ११वां हाद्सा कुछ भी नही हुआ मै सही-सलामत घर पहुँच गया और सोते वक्त सोचता रहा कि कितना और कुछ हो सकता था जो नही हुआ! सुबह जब ऊठा तो मेरा कन्धा अकडा चुका था! आज उस अकडन को दो दिन हो गये है और आप विश्वास करे या ना करे मेरा मित्र शिवमणी अनायास ही सिद्धीविनायक का प्रसाद लेकर आया है, जो मै अब खा रहा हूँ! शायद गणेशजी कुछ कृपा करे!

जय गणेश!

Thursday, July 2, 2009

हिन्दी में टाइपिंग और ब्लॉग्गिंग

कुछ दिनों पहले मैं अपने ललित मामाजी का ब्लॉग पढ़ रहा था तो उसमे अपनी बिट्टन दीदी का एक कमेन्ट पढ़ा जिसमे उन्होंने हिन्दी में ब्लॉग लिखने के बारें में पूछा हुआ था! यह पढ़कर मुझे लगा कि हिन्दी में ब्लॉग्गिंग करने को लेकर अभी हमारे दोस्त उत्सुक है लेकिन जानकारी का आभाव है कि इस कंप्यूटर के युग में हिन्दी में ब्लॉग्गिंग कैसे की जाए! इसी विषय पर थोड़ा रौशनी डालना चाहूँगा और बताना चाहूँगा की UNICODE में हिन्दी को सम्मान दिया गया है और अब हम सब हिन्दी में कंप्यूटर पर लेख भी लिख सकते है! हिन्दी में वैसे टाइप करने के बहुत तरीके पर मैं आपको सब कुछ न बताकर साफ़ साफ़ शब्दों में निम्न कार्य करने के लिए कहूँगा:
१- आप इस लिंक पर जाए और वह जो भी लेटेस्ट Baraha version मिले डाउनलोड कर ले! इस सॉफ्टवेर के जरिये आप अपने कंप्यूटर पर हिन्दी में लिख सकते है! इस सॉफ्टवेर को इंस्टाल करने के बाद आप एक F11 key के जरिये हिन्दी और इंग्लिश में स्विच कर सकते है!
२- आप सीधा ब्लॉगर पर अपना अकाउंट बनाये और सेत्तिंग्स में जाकर हिन्दी में transliteration को एक्टिव कर दे! फ़िर जब भी आप ब्लॉग को क्रेअते करेंगे तो वह पर 'अ' बना हुआ आएगा! जिसे हाईलाईट करते ही आप हिन्दी में लिखने लगेंगे! देखा कितना आसान हाई अपनी मात्रभाषा में लिखना!

यह जानकर आपको और भी आश्चर्य होगा की हिन्दी में टाइपिंग के लिए इंग्लिश में ही शब्द टाइप करने पड़ते हाई और ब्लॉगर तो अपने आप ही काफी अक्ष्शारो को ठीक कर देता हाई! वही Braha में टाइप करने के लिए थोड़ा सा अभ्यास करना पड़ता हाई! अभ्यास उतना ही जितना आपको Windows Wordpad सिखने के लिए करना पड़ा था! तो क्या अपनी मात्रभाषा में लिखना चाहते हाई और इतना भी नही करेंगे! [:)]

आपकी हिन्दी की ब्लॉग यात्रा सफल रहे!

Friday, June 19, 2009

असाधारण यात्रा

मैं रामपुर जा रहा था कि अचानक से मेरा फ़ोन बजा और मेरी बहन ने कहा कि भइया आप हमें अपने साथ दिल्ली ले जाओ! मैं सोचकर थोड़ा चौक गया क्यूंकि मैं एक रात पहले ही आँचल, आरुशी, और अन्नू को सहारनपुर लेकर आया था ताकि वो अपने मामा से मिल सके! उनके मामा हमारे पड़ोस में ही रहते है! खैर मैंने वोह सब सोचकर उन्हें हाँ कह दिया कि मैं उन्हें दिल्ली ले जाऊंगा क्यूंकि वहां जाकर उन्हें अपने गुरूजी से मिलना था! मुझे अपना प्रोग्राम उनकी वजह से परिवर्तित करना पड़ा लेकिन मैंने इस बात को ज्यादा महत्व नही दिया और उन्हें दिल्ली ले जाने के लिए बस स्टाप बुला लिया जहाँ से शुरू हुई हमारी "असाधारण यात्रा"!

मेरी बहन ने मिलते ही बताया कि भइया जिस स्कूटर से हम लोग बस स्टाप आ रहे थे उसका एक्सीडेंट होते होते बचा! मैंने भगवान् का शुक्र अदा किया और उन सबको बस में बैठा दिया! उस वक्त सब कुछ साधारण और सामान्य लग रहा था और एहसास भी नही था कि हमें क्या क्या अनुभव होने वाला है! आँचल और अरुशी एक साथ एक सीट पर बैठ आगे और मैं अन्नू को लेकर दूसरी सीट पर! परिचालक ने आवाज़ लगायी और बस दिल्ली के लिए चल पड़ी!


जिस सीट पर हम लोग पहले बैठने वाले थे वह पर धुप सीधा पड़ रही थी जिस कारण से सीट का लोहा गरम हो गया और वह बैठे लोग परेशां होने लगा! आँचल और मैंने मजाक में कहा कि "आज सब जगह बाल बाल बच रहे है पहेल एक्सीडेंट और फ़िर ऐसी सीट!" सच में गर्मियों में दोपहर के दो बजे सब कुछ झुलस रहा था! एकदम से एक झटका लगता है और बस आगे कि तरफ़ हो जाती है! चालक बस रोककर उतरता है और सभी सवारिया बस से नीचे चली जाती है! हमें कुछ समझ नही आता बस इतना एहसास होता है कि हमारी बस का एक्सीडेंट हो गया है! मैं सब भाई बहनों में सबसे बड़ा था तो बस से उतरकर नीचे देखता हूँ तो वह एक आदमी को पीटा जा रहा था जो ट्रक का चालक था! वोह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ता है और जैसे ही लोग उसे मारकर हट जाते है वोह मौका पाकर एकदम ऐसे खड़ा होता है जैसे कुछ हुआ ही न हो! तभी लोगो कि नजर उस पर पड़ती है और सब उसे फ़िर पीटने लगते है! मुझे समझ नही आ रहा था कि एक ऐसे एक्सीडेंट पर जिसमे दोनों का नुक्सान हुआ हो उसमे बस उस ट्रक वाले को क्यूँ पीटा जा रहा है? तभी मैंने एक आदमी कि बात सुनी तो मेरे होश उड़ गए! वो कह रहा था कि "शायद ही वो जिन्दा बचे ट्रक के नीचे से बड़ी मुश्किल से निकला है"! आम आदमी कि तरह मैंने भी ट्रक के नीचे देखा तो आँखे फटी रह गई वह एक मोटरसाईकिल फासी हुई थी और लोगो ने एक आदमी को उसके नीचे से खीचकर निकला था! वह सब उसे मरने पर लगे थे तो मैंने कहा कि मार बाद में देना पहले इसे हॉस्पिटल पंहुचा दो क्यूंकि उसकी साँस रुकने लगी थी! तभी मेरी बस चलना शुरू हो गई और मुझे वह से जाना पड़ा क्यूंकि मेरे साथ मेरे भाई बहन बस में इंतज़ार कर रहे थे! साथ बैठी सवारियों ने बताया कि वोह आदमी बस और ट्रक के बीच में था जो टक्कर कि वजह से घसीट कर पीछे पहिये तक पहुच गया था और पीछे फस गया था! सोचकर लगा कि आज कह दिन ही ऐसा है!

अब सब सही चल रहा था और बस शामली पार करके बडौत जा रही थी कि गर्मी एकदम से गायब हो गई और तूफ़ान आ गया! कुछ भी समझ नही आ रहा था कि यह सब आज और हमारे साथ क्यूँ हो रहा है जब हम बच्चे साथ में है तो! हम सबको पता था कि यह सब घर पर पता चला तो आगे से कभी अकेले नही भेजा जाएगा! खैर जो भी हो बस रुकी और इन्तजार करने लगी कि कब तूफ़ान थामे! इतना तेज़ तूफ़ान था कि बस भी हिल रही थी! हमारी साँस अटकी हुई थी कि न जाने अभी और क्या क्या होना है! लेकिन सब सही हुआ और तूफ़ान थम गया! आँचल, मैं और आरुशी अभी भी मजाक कर रहे थे कि "आज कह तो दिन ही ऐसा है, लगता है गुरूजी बुलाना नही चाहते"!

बस अब बागपत पहुचने वाली थी कि एक और आवाज आई! इस बार यह आवाज बहुत तेज़ थी! परिचालक चिलाया बस कह शीशा टूट गया है! मुझे लगा कि ट्रक ने जो टक्कर मरी थी उसी से कोई शीशा टूटा होगा! अन्नू खड़ा हुआ और बोला भइया मैं देखकर आता हूँ! मैंने कहा, "दो बिलंद के आदमी बैठ जा"! लेकिन वोह आरुशी के पास गया और वापस आ गया! मैं सोच रहा था कि बच्चे भी कैसे होते है बस खिड़की में से देखा और खुश हो गए! क्यूंकि मुझे लगा था कि वोह बस से निचे उतरकर जाएगा! जब वोह वापस आया तो मैंने ताना मरते हुए पुचा, "सब सही है न हीरो"! वोह बोला कि आँचल बाल बाल बच गई! 'क्या????' हाँ मेरे भी मुंह से यही सवाल निकला! उसने बताया कि भइया आँचल के पास वाला शीशा टूटकर बहार गिर पड़ा था! मैं सोचकर सकपका गया कि मुझे कुछ एहसास भी नही हुआ और यह क्या हो रहा है! मैं सच में डर गया और चाहता था कि भगवान् मेरे साथ कुछ भी कर दे लेकिन पहले इन बच्चो को दिल्ली वाली मौसी के यहाँ छोड़ आऊं ताकि वह से यह गुरूजी के यहाँ चली जाए!

अब मैं सहमा हुआ सा बैठा था कि लगता है आज साया ख़राब है कि अन्नू बोलता है "भईया, खून!" हे भगवान् यह सब मेरे साथ ही क्यूँ हो रहा है मैं इतना बड़ा भी नही हुआ हूँ! अन्नू कि नक्सी छूट रही थी! मैंने उसे बस में उल्टा लिटाया और थोड़ा मजाक करता रहा ताकि मेरे भाई बहन डर न जाए! वोह असाधारण यात्रा अब असाधारण नही लग रही थी! भले ही कोई न बोले हम सब डरे हुए थे! मुझे डर था कि कही बच्चो के साथ कुछ न हो जाए! बाहर बारिश और अंदर अन्नू को नक्सी, थोडी देर पहले आँचल के पास वाला शीशा और थोड़ा पहले बस कह एक्सीडेंट और थोड़ा पहले सोचो तो बच्चे जिस स्कूटर से आ रहे थे उसका एक्सीडेंट! अब मुझे डर लग रहा था कि कुछ हो न जाए!

अन्नू कि नक्सी रुक गई उसका मुंह पानी से धो दिया और अब दिल्ली भी आ चुका था कि बस फ़िर से रुक गई! एक सवारी बोलती है "थोड़ा रोक कर चलना भईया बच्चे को शु शु करवा दू"! तब मुझे पहली बार लगा कि यह बस बिना बस स्टाप के रास्ते में आम हालातो में भी रुक सकती है! मुझे नही पता बस में आगे क्या हुआ, क्यूंकि थोड़ा आगे चलकर मैं पुसते पर बस से उतर गया और भगवान् का शुक्र अदा करने लगा! लेकिन मुझे अभी भी लग रहा था कि आज कुछ हो सकता है और सिर्फ़ इसी वजह से मैंने बच्चो को गुरूजी से मिलने नही दिया! मैंने उन्हें डरा डरा कर मन करवा दिया कि आज कुछ हो सकता है, या गुरूजी मिलना नही चाहते इसलिए तुम मत जाओ! मुझे पता है कि मैंने आख़िर में बेवकूफी वाला काम किया जो मैंने उन्हें गुरूजी से नही मिलने दिया! लेकिन आज मैं सोचता हूँ तो एक डरा हुआ आदमी जो करता है मैंने भी वही किया, क्यूंकि उस वक्त हम सबके जज्बातों को समझने वाला कोई नही था! आज याद करता हूँ तो सोचता हूँ कि गुरूजी नही मिलना चाहते होंगे और इसलिए इतना कुछ हुआ!

आख़िर में गुरूजी से नही मिले! मैं गुरूजी में विश्वास नही करता इसलिए नही कह सकता कि यह सब उनकी इच्छा थी या एकमात्र संयोग! इन सब बातों में बस एक बात थी वो यह कि हमारी असाधारण सी यात्रा शायद असाधारण नही थी!