मैं रामपुर जा रहा था कि अचानक से मेरा फ़ोन बजा और मेरी बहन ने कहा कि भइया आप हमें अपने साथ दिल्ली ले जाओ! मैं सोचकर थोड़ा चौक गया क्यूंकि मैं एक रात पहले ही आँचल, आरुशी, और अन्नू को सहारनपुर लेकर आया था ताकि वो अपने मामा से मिल सके! उनके मामा हमारे पड़ोस में ही रहते है! खैर मैंने वोह सब न सोचकर उन्हें हाँ कह दिया कि मैं उन्हें दिल्ली ले जाऊंगा क्यूंकि वहां जाकर उन्हें अपने गुरूजी से मिलना था! मुझे अपना प्रोग्राम उनकी वजह से परिवर्तित करना पड़ा लेकिन मैंने इस बात को ज्यादा महत्व नही दिया और उन्हें दिल्ली ले जाने के लिए बस स्टाप बुला लिया जहाँ से शुरू हुई हमारी "असाधारण यात्रा"!मेरी बहन ने मिलते ही बताया कि भइया जिस स्कूटर से हम लोग बस स्टाप आ रहे थे उसका एक्सीडेंट होते होते बचा! मैंने भगवान् का शुक्र अदा किया और उन सबको बस में बैठा दिया! उस वक्त सब कुछ साधारण और सामान्य लग रहा था और एहसास भी नही था कि हमें क्या क्या अनुभव होने वाला है! आँचल और अरुशी एक साथ एक सीट पर बैठ आगे और मैं अन्नू को लेकर दूसरी सीट पर! परिचालक ने आवाज़ लगायी और बस दिल्ली के लिए चल पड़ी!
जिस सीट पर हम लोग पहले बैठने वाले थे वह पर धुप सीधा पड़ रही थी जिस कारण से सीट का लोहा गरम हो गया और वह बैठे लोग परेशां होने लगा! आँचल और मैंने मजाक में कहा कि "आज सब जगह बाल बाल बच रहे है पहेल एक्सीडेंट और फ़िर ऐसी सीट!" सच में गर्मियों में दोपहर के दो बजे सब कुछ झुलस रहा था! एकदम से एक झटका लगता है और बस आगे कि तरफ़ हो जाती है! चालक बस रोककर उतरता है और सभी सवारिया बस से नीचे चली जाती है! हमें कुछ समझ नही आता बस इतना एहसास होता है कि हमारी बस का एक्सीडेंट हो गया है! मैं सब भाई बहनों में सबसे बड़ा था तो बस से उतरकर नीचे देखता हूँ तो वह एक आदमी को पीटा जा रहा था जो ट्रक का चालक था! वोह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ता है और जैसे ही लोग उसे मारकर हट जाते है वोह मौका पाकर एकदम ऐसे खड़ा होता है जैसे कुछ हुआ ही न हो! तभी लोगो कि नजर उस पर पड़ती है और सब उसे फ़िर पीटने लगते है! मुझे समझ नही आ रहा था कि एक ऐसे एक्सीडेंट पर जिसमे दोनों का नुक्सान हुआ हो उसमे बस उस ट्रक वाले को क्यूँ पीटा जा रहा है? तभी मैंने एक आदमी कि बात सुनी तो मेरे होश उड़ गए! वो कह रहा था कि "शायद ही वो जिन्दा बचे ट्रक के नीचे से बड़ी मुश्किल से निकला है"! आम आदमी कि तरह मैंने भी ट्रक के नीचे देखा तो आँखे फटी रह गई वह एक मोटरसाईकिल फासी हुई थी और लोगो ने एक आदमी को उसके नीचे से खीचकर निकला था! वह सब उसे मरने पर लगे थे तो मैंने कहा कि मार बाद में देना पहले इसे हॉस्पिटल पंहुचा दो क्यूंकि उसकी साँस रुकने लगी थी! तभी मेरी बस चलना शुरू हो गई और मुझे वह से जाना पड़ा क्यूंकि मेरे साथ मेरे भाई बहन बस में इंतज़ार कर रहे थे! साथ बैठी सवारियों ने बताया कि वोह आदमी बस और ट्रक के बीच में था जो टक्कर कि वजह से घसीट कर पीछे पहिये तक पहुच गया था और पीछे फस गया था! सोचकर लगा कि आज कह दिन ही ऐसा है!
अब सब सही चल रहा था और बस शामली पार करके बडौत जा रही थी कि गर्मी एकदम से गायब हो गई और तूफ़ान आ गया! कुछ भी समझ नही आ रहा था कि यह सब आज और हमारे साथ क्यूँ हो रहा है जब हम बच्चे साथ में है तो! हम सबको पता था कि यह सब घर पर पता चला तो आगे से कभी अकेले नही भेजा जाएगा! खैर जो भी हो बस रुकी और इन्तजार करने लगी कि कब तूफ़ान थामे! इतना तेज़ तूफ़ान था कि बस भी हिल रही थी! हमारी साँस अटकी हुई थी कि न जाने अभी और क्या क्या होना है! लेकिन सब सही हुआ और तूफ़ान थम गया! आँचल, मैं और आरुशी अभी भी मजाक कर रहे थे कि "आज कह तो दिन ही ऐसा है, लगता है गुरूजी बुलाना नही चाहते"!
बस अब बागपत पहुचने वाली थी कि एक और आवाज आई! इस बार यह आवाज बहुत तेज़ थी! परिचालक चिलाया बस कह शीशा टूट गया है! मुझे लगा कि ट्रक ने जो टक्कर मरी थी उसी से कोई शीशा टूटा होगा! अन्नू खड़ा हुआ और बोला भइया मैं देखकर आता हूँ! मैंने कहा, "दो बिलंद के आदमी बैठ जा"! लेकिन वोह आरुशी के पास गया और वापस आ गया! मैं सोच रहा था कि बच्चे भी कैसे होते है बस खिड़की में से देखा और खुश हो गए! क्यूंकि मुझे लगा था कि वोह बस से निचे उतरकर जाएगा! जब वोह वापस आया तो मैंने ताना मरते हुए पुचा, "सब सही है न हीरो"! वोह बोला कि आँचल बाल बाल बच गई! 'क्या????' हाँ मेरे भी मुंह से यही सवाल निकला! उसने बताया कि भइया आँचल के पास वाला शीशा टूटकर बहार गिर पड़ा था! मैं सोचकर सकपका गया कि मुझे कुछ एहसास भी नही हुआ और यह क्या हो रहा है! मैं सच में डर गया और चाहता था कि भगवान् मेरे साथ कुछ भी कर दे लेकिन पहले इन बच्चो को दिल्ली वाली मौसी के यहाँ छोड़ आऊं ताकि वह से यह गुरूजी के यहाँ चली जाए!
अब मैं सहमा हुआ सा बैठा था कि लगता है आज साया ख़राब है कि अन्नू बोलता है "भईया, खून!" हे भगवान् यह सब मेरे साथ ही क्यूँ हो रहा है मैं इतना बड़ा भी नही हुआ हूँ! अन्नू कि नक्सी छूट रही थी! मैंने उसे बस में उल्टा लिटाया और थोड़ा मजाक करता रहा ताकि मेरे भाई बहन डर न जाए! वोह असाधारण यात्रा अब असाधारण नही लग रही थी! भले ही कोई न बोले हम सब डरे हुए थे! मुझे डर था कि कही बच्चो के साथ कुछ न हो जाए! बाहर बारिश और अंदर अन्नू को नक्सी, थोडी देर पहले आँचल के पास वाला शीशा और थोड़ा पहले बस कह एक्सीडेंट और थोड़ा पहले सोचो तो बच्चे जिस स्कूटर से आ रहे थे उसका एक्सीडेंट! अब मुझे डर लग रहा था कि कुछ हो न जाए!
अन्नू कि नक्सी रुक गई उसका मुंह पानी से धो दिया और अब दिल्ली भी आ चुका था कि बस फ़िर से रुक गई! एक सवारी बोलती है "थोड़ा रोक कर चलना भईया बच्चे को शु शु करवा दू"! तब मुझे पहली बार लगा कि यह बस बिना बस स्टाप के रास्ते में आम हालातो में भी रुक सकती है! मुझे नही पता बस में आगे क्या हुआ, क्यूंकि थोड़ा आगे चलकर मैं पुसते पर बस से उतर गया और भगवान् का शुक्र अदा करने लगा! लेकिन मुझे अभी भी लग रहा था कि आज कुछ हो सकता है और सिर्फ़ इसी वजह से मैंने बच्चो को गुरूजी से मिलने नही दिया! मैंने उन्हें डरा डरा कर मन करवा दिया कि आज कुछ हो सकता है, या गुरूजी मिलना नही चाहते इसलिए तुम मत जाओ! मुझे पता है कि मैंने आख़िर में बेवकूफी वाला काम किया जो मैंने उन्हें गुरूजी से नही मिलने दिया! लेकिन आज मैं सोचता हूँ तो एक डरा हुआ आदमी जो करता है मैंने भी वही किया, क्यूंकि उस वक्त हम सबके जज्बातों को समझने वाला कोई नही था! आज याद करता हूँ तो सोचता हूँ कि गुरूजी नही मिलना चाहते होंगे और इसलिए इतना कुछ हुआ!
आख़िर में गुरूजी से नही मिले! मैं गुरूजी में विश्वास नही करता इसलिए नही कह सकता कि यह सब उनकी इच्छा थी या एकमात्र संयोग! इन सब बातों में बस एक बात थी वो यह कि हमारी असाधारण सी यात्रा शायद असाधारण नही थी!